CG News: भारत की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए कपास एक बेहद जरूरी नकदी फसल है, जिसे ’व्हाइट गोल्ड’ (सफेद सोना) भी कहा जाता है। अब छत्तीसगढ़ भी इस क्षेत्र में तेजी से अपनी पहचान बना रहा है। राज्य में अनुकूल जलवायु और उन्नत खेती के तरीकों के कारण पिछले पांच सालों में कपास की खेती का रकबा 10 गुना से ज्यादा बढ़ गया है।
प्रज्ञा पांडेय, सहायक प्राध्यापक, सस्य विज्ञान विभाग, कृषि महाविद्यालय, आईजीकेवी ने बताया जहां 2018 में यह रकबा मात्र 478 हेक्टेयर था, वहीं 2023 तक यह बढक़र 5,389 हेक्टेयर हो गया है। इस विस्तार का नतीजा है कि राज्य में अब लगभग 9,935 गांठ कपास का उत्पादन हो रहा है। दुर्ग, बेमेतरा, राजनांदगांव, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, बलौदाबाजार, और रायपुर जैसे जिले प्रमुख कॉटन प्रोड्यूसर बनकर उभरे हैं।
चुनौतियां और ’स्मार्ट’ समाधान
कॉटन पर रिसर्च कर रहीं प्रज्ञा बताती हैं, किसानों को अभी भी कई चुनौतियां झेलनी पड़ रही हैं। किस्मों की कमी, पोषण प्रबंधन न अपनाना और खरपतवार नियंत्रण में दिक्कतें पैदावार को प्रभावित कर रही हैं। वहीं, अनियमित बारिश और गुलाबी बॉलवॉर्म जैसे कीटों का प्रकोप एक गंभीर समस्या है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के वैज्ञानिक युद्ध स्तर पर काम कर रहे हैं। वे सीआईसीआर से प्राप्त बीजों पर शोध कर रहे हैं।
परीक्षण कर रहे आईजीकेवी के शोधकर्ता
आईजीकेवी के शोधकर्ता रायपुर, बेमेतरा और कवर्धा जिलों में नई किस्मों फसल ज्यामिति खरपतवार प्रबंधन और पोषण प्रबंधन पर परीक्षण कर रहे हैं। कपास की खेती मुख्य रूप से काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में होती है। यह मिट्टी नमी को लंबे समय तक रोककर रखती है। दोर्सा मिट्टी (काली और लाल मिट्टी का मिश्रण), जो बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर में मिलती है, भी पोटेंशियल रखती है।
किसान क्यों हैं परेशान?
कीटों का प्रकोप: बदलते मौसम के कारण गुलाबी और अमरीकन बॉलवॉर्म जैसे कीट उपज और फाइबर क्वालिटी को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं।
टेक्नोलॉजी गैप: अधिकांश किसान अभी भी हाई डेंसिटी प्लांटिंग जैसी आधुनिक तकनीकों से अनभिज्ञ हैं, जिससे उन्हें अपेक्षित उपज नहीं मिल पाती।
कहां कितना उत्पादन
बेमेतरा: 2,257 हे. क्षेत्र से 3,639 बेल उत्पादन
दुर्ग: 1,651 हे. क्षेत्र से 2,375 बेल उत्पादन
राजनांदगांव: 524 हे. क्षेत्र से 1,448 बेल उत्पादन
रायपुर (950 बेल), खैरागढ़-छुईखदान-गंडई (1,330 बेल) और बलौदाबाजार (193 बेल) भी उत्पादन में योगदान दे रहे हैं। इसके अलावा, काली मिट्टी वाले मुंगेली, पंडरिया और बालोद जैसे जिलों में विस्तार की बड़ी संभावनाएं हैं।
