पांच दिवसीय दीपोत्सव सभी ने धूमधाम से मनाया। त्योहार के लिए सभी ने साफ-सफाई की… रोशनी की..। घर-गली-मोहल्ला-शहर-प्रदेश सभी चकाचक और जगमग रहे। त्योहार के अगले दिन एक बदरंग तस्वीर नजर आई। चकाचक-साफ-सुथरे की बजाय जगह-जगह कचरे के ढेर लगे थे। नालियां भी जाम थी। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की ही बात करें, तो यहां की सफाई व्यवस्था पूरी तरह ठप रही। हालांकि नगर निगम ने दावा किया कि राजधानी के प्रमुख 52 मार्गों की सफाई के लिए सात मैकेनाइज्ड स्वीपिंग मशीनें लगाई गई थीं और रात में विशेष सफाई कराने का काम किया गया। लेकिन, सड़कों पर पटाखों का कचरा, अन्य सामग्री-रैपर आदि के ढेर अभी भी देखे जा सकते हैं। वहीं डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन करने वाली रामकी कंपनी की गाडिय़ों के पहिए भी थमे रहे। नगर निगम प्रशासन ने साफ-सफाई और स्ट्रीट लाइटों के लिए जोन के अधिकारियों के मोबाइल नंबर सार्वजनिक किए थे, वो भी काम नहीं आए। क्योंकि सफाई ठेकेदार और कामगार दोनों छुट्टी पर चले गए थे। वहीं, रायपुर सहित प्रदेश के प्रमुख शहरों की हवा भी खराब हुई। त्योहार पर जमकर आतिशबाजी हुई। इससे राजधानी रायपुर से लेकर न्यायधानी बिलासपुर तक हवा में प्रदूषण का स्तर निर्धारित मानक से दोगुना जा पहुंचा। पटाखों को लेकर कोर्ट की गाइडलाइन है। कैसे पटाखे चलाने हैं, कितने बजे तक चलाने हैं, आदि आदि। तो कहीं बैन भी कर दिया जाता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या त्योहारों पर खुशियों पर बैन लगाया जा सकता है? साफ-सफाई व्यवस्था चरमराने के लिए सिर्फ आमलोगों को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? यह तो सर्वविदित है कि हर साल त्योहार आएंगे और इन्हें लगभग इसी तरह से उत्साह-उमंग के साथ मनाया भी जाएगा। तो फिर प्रदूषण और अन्य अव्यवस्था-समस्या का समाधान कैसे होगा। इसके लिए लोगों और समाज को तो जागरूक होना ही होगा… और लोग धीरे-धीरे जागरूक हो भी रहे हैं। वे स्वमेय ही साफ-सफाई और प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान दे रहे हैं। लेकिन शासन-प्रशासन को भी समझना चाहिए कि सिर्फ नियम-कानून लागू कर देने से ही समस्या का समाधान नहीं हो जाता। शासन-प्रशासन साफ-सफाई सहित अन्य व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त रखे। –अनुपम राजीव राजवैद्य anupam.rajiv@in.patrika.com
